टांटिया हाई स्कूल ने हमेशा मूल्य आधारित शिक्षा प्रदान करने का प्रयास किया है। कक्षा V में, हम बाल रामायण पढ़ते थे और कक्षा VII में हमारे पास एक किताब थी - भूले ना भुलाये , जो हमारे स्कूल के संस्थापक और राजस्थान और कोलकाता के प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता श्री रामेश्वरलाल टांटिया द्वारा लिखी गई थी। पुस्तक की प्रत्येक कहानी किसी भी बच्चे के चरित्र निर्माण में सहायक है।
सबसे अच्छी बात यह थी की हमारी क्लास में ,यह पुस्तक श्री एस एन पाठक द्वारा पढ़ाई गई थी। उन्होंने पुस्तक को पूरी निष्ठा और पूरी गंभीरता से पढ़ाया। प्रायः प्रश्न पत्र बनाने वाले टीचर्स पहले ही चैप्टर (जीवन की उपलब्धि) से सिर्फ एक ही प्रश्न हर परीक्षा में पूछते थ। अर्थात बाकी चैप्टर ना भी पढ़े तो कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता थ।
लेकिन यह एस एन पाठक ही थे जो पूरे पाठ्यक्रम की प्रत्येक पंक्ति को समय के भीतर पढ़ाने के लिए बहुत गंभीर थे. उन्होंने सिर्फ अपना पाठ्यक्रम ही नहीं शेष किया , अपितु हर कहानी के मुख्या पत्र का चरित्र चित्रण पूछा बताया और याद कराया | अगर वो गंभीरता से ना भी पढ़ते तो शायद उन्हें कोई कुछ नहीं बोलता। परन्तु शायद वो जानते थे की अगर वो अपने छात्रों को मानवीय मूल्य के ऊपर कहानियां पढ़ा रहे हैं तो उन्हें भी वैसा ही बर्ताव करना पड़ेगा
यह व्यावसायिकता का एक सर्वोत्तम उदहारण ह। अगर हम यह शिक्षा उनसे ले लें तो हमारे जीवन में बेहतरी ही होगी
भूले ना भुलाये अगर आपको कहीं भी मिले तो अपने बच्चों को दे। कम से कम मैंने अपने जीवन में कुछ शिक्षा तो ली ही है, उससे मुझे कहीं यशा मिला है | रामेश्वर लाल जी ने अपने जीवन के अनुभव और सुनी हुई ऐतिहासिक कहानियों को रेखांकित किया है।
A few pages for your lovely recollection .and on demand ... I have posted one chapter of the book